यह गांव अंधविश्वास और सामाजिक कुरीतियों
में जकड़ा हुआ था इसी गांव में रहती थी एक
स्त्री जिसका नाम था
सुमित्रा सुमित्रा एक विधवा थी उसके पति
की मृत्यु हुए तीन वर्ष बीत चुके थे जब
उसके पति हरिप्रसाद की बीमारी से मौत हुई
तब से उसके जीवन में सिवाय आंसुओं और
तानों के कुछ भी नहीं बचा था हरिप्रसाद
गांव के एक साधारण किसान थे उनका घर छोटा
सा था मगर उसमें सुमित्रा के साथ उनका
प्यार और आपसी समझदारी बचती थी मगर जैसे
ही हरिप्रसाद की मृत्यु हुई सु का संसार
अंधकार में डूब गया गांव वाले उसे एक अशुभ
स्त्री मानने लगे गांव की औरतें उसके साथ
उठने बैठने से कतराती पुरुषों से तानों और
अपमान से नवाज बच्चों को कहा जाता कि
सुमित्रा के घर के पास भी ना जाए हर सुबह
जब सुमित्रा गांव के कुंगे पर पानी भरने
जाती तो औरतें आपस में
फुसफुसाना आ गई जिसके पांव जहां पड़ जाते
हैं वहां कुछ अशुभ ही होता है सुमित्रा ने
कई बार इन तानों को अनसुना करने की कोशिश
की मगर उनकी बातों के कांटे उसके दिल को
चीरते रहे रातें उसके लिए और भी कठिन होती
हैं जब पूरा गांव गहरी नींद में सो जाता
सुमित्रा आंगन में बैठकर आसमान की ओर
देखती चांद की चांदनी उसकी आंखों में आंसू
भर देती वह अक्सर अपने पति की तस्वीर के
आगे दीप जलाकर रोती और भगवान से पूछती
आखिर मैंने कौन सा पाप किया है जो मेरा
जीवन इस तरह नर्क बन गया कई बार उसने गांव
छोड़कर जाने की भी सोची मगर कहां जाती
उसके माता-पिता बहुत पहले ही चल बसे थे
भाई-बहनों ने उसके विधवा होते ही मुंह फेर
लिया एक दिन जब सुमित्रा अपनी टूटी फूटी
झोपड़ी के बाहर बैठी थी तभी उसने देखा कि
गांव के बाहर वाले रास्ते पर तीन साधु चले
आ रहे हैं वे सफेद दाढ़ी वाले भगवा वस्त्र
पहने हुए थे उनके चेहरे पर तेज था मगर
आंखों में एक अजीब सा रहस्य झड़ रहा था
गांव वालों ने उन साधुओं को देखते ही उनके
चारों ओर घेरा बना लिया सभी ने उनके पांव
छुए और आशीर्वाद मांगा गांव के मुखिया ने
साधुओं से विनती की महाराज कृपया हमारे
गांव में कुछ दिन रुके हमें आपका आशीर्वाद
चाहिए साधुओं ने गांव में रुकने के लिए
हामी भर दी लेकिन फिर उनकी नजर सुमित्रा
पर पड़ी उनमें से सबसे वृद्ध साधु ने
सुमित्रा को देखते ही कहा यह स्त्री दुख
से घिरी है मगर इसके भाग्य में कुछ अनोखा
लिखा है गांव वाले यह सुनकर चौक गए उन्हें
विश्वास नहीं हो रहा था कि वही सुमित्रा
जिसे वे अशुभ मानते थे उसके भाग्य में कुछ
खास हो सकता है सुमित्रा खुद भी हैरान थी
उसके मन में सवाल उठे आखिर यह साधु कौन है
और मेरे भाग्य के बारे में ऐसा क्यों कह
रहे हैं तीनों साधु गांव के बीचोंबीच
स्थित एक पुराने मंदिर में ठहरे यह मंदिर
वर्षों से वीरान पड़ा था मगर साधुओं के
आते ही व रौनक लौट आई गांव वाले उन्हें
देखने के लिए रोज वहां पहुंचते और उनके
प्रवचनों को सुनते सुमित्रा भी मंदिर के
बाहर खड़ी होकर साधुओं की बातें सुनती
लेकिन गांव के लोग उसे भीतर जाने नहीं
देते थे एक दिन जब सभी लोग प्रवचन सुन रहे
थे तब सबसे वृद्ध साधु ने कहा हर व्यक्ति
के जीवन में दहक आते हैं लेकिन केवल वही
व्यक्ति अपने भाग्य को बदल सकता है जो
अपने भीतर छिपे रहस्य को पहचान ले
सुमित्रा को यह सुनकर अजीब लगा वह सोचने
लगी क्या मैं अपने दहक को दूर कर सकती हूं
क्या मैं भी अपने भाग्य को बदल सकती हूं
तीन साधु कौन थे तीनों साधु साधारण
व्यक्ति नहीं थे उनकी आंखों में गहरी समझ
थी और उनके शब्दों में अपार शक्ति वन पहले
साधु का नाम था ज्ञानानंद वे आध्यात्मिक
ज्ञान के जाता थे उनका कहना था कि दुनिया
में कोई भी दोहक तब तक समाप्त नहीं हो
सकता जब तक मनुष्य स्वयं को नहीं पहचान
लेता तो दूसरे साधु का नाम था कर्मा अंद
वे कर्म के सिद्धांत को मानते थे उनका
कहना था कि भाग्य से बड़ा केवल कर्म होता
है यदि किसी का जीवन अंधकारमय है तो उसे
केवल अपने कर्मों से ही रोशनी में बदला जा
सकता है थ्री तीसरे साधु का नाम था ध्याना
अंद वे साधना और ध्यान के मार्ग पर चलते
थे उनका कहना था कि आत्मा को शांत करके मन
को नियंत्रित करके कोई भी व्यक्ति अपने
दुखों से मुक्ति पा सकता है रात के समय जब
गांव वाले अपने घर चले गए तो सुमित्रा
मंदिर के पास आई उसे विश्वास नहीं हो रहा
था कि तीनों साधु सच में उससे मिलना चाहते
हैं जैसे ही वह मंदिर के अंदर पहुंची
तीनों साधु उसकी ओर देखने लगे कुछ देर तक
कोई कुछ नहीं बोला फिर ज्ञानानंद बोले तुम
हमें क्यों ढूंढ रही हो पुत्री सुमित्रा
कांपते हुए बोली मुझे कुछ समझ नहीं आता
मैं बस यह जानना चाहती हूं कि मेरे जीवन
में इतना दहक क्यों है मैंने किसी का क्या
बिगाड़ा है तीनों साधु मुस्कुराए कमानंद
ने कहा दुनिया में कोई भी दुख बिना कारण
नहीं आता तुमने अपने पूर्व जन्मों में जो
किया है उसका ही परिणाम तुम्हें इस जन्म
में मिला है लेकिन घबराओ मत क्योंकि हर
कर्म को नए कर्मों से बदला जा सकता है
सुमित्रा ने आंखें भरते हुए पूछा क्या मैं
अपना भाग्य बदल सकती हूं ध्याना अंद ने
धीरे से उत्तर दिया हां लेकिन उसके लिए
तुम्हें परीक्षा देनी होगी क्या तुम तैयार
हो सुमित्रा ने बिना कुछ सोचे जवाब दिया
मैं तैयार हूं तीनों साधु एक दूसरे की ओर
देखने लगे यह देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वे
किसी रहस्य को जानते हो ज्ञानानंद ने कहा
तो फिर कल सूरज उगने से पहले तुम जंगल के
पास वाले पीपल के पेड़ के नीचे आओ वहां से
तुम्हारी यात्रा शुरू होगी सुमित्रा को
कुछ समझ नहीं आया मगर उसने सिर हिलाकर
हामी भर दी गांव में फैली अफवाह अगले दिन
गांव में यह खबर आग की तरह फेल गई कि
तीनों साधुओं ने सुमित्रा को जंगल में
लाया है गांव के लोग आपस में चर्चा करने
लगे क्या यह साधु इसे कोई वरदान देने वाले
हैं या फिर इसे श्राप मिलेगा गांव की कुछ
औरतें आपस में फूस फुसा लगी कहीं यह साधु
हमें धोखा तो नहीं दे रहे लेकिन सुमित्रा
को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ा उसे
केवल इस बात की चिंता थी कि आखिर जंगल में
उसके साथ क्या होने वाला है उस रात
सुमित्रा सो नहीं सकी वह बार-बार सोच रही
थी क्या सच में कोई मेरी मदद कर सकता है
या यह भी सिर्फ एक और छलावा है लेकिन अब
वह ठान चुकी थी कि चाहे कुछ भी हो जाए वह
अगले दिन सूरज उगने से पहले जंगल के पास
जाएगी ही खड़े थे वे गहरी तपस्या में लीन
थे उनके चारों ओर एक अद्भुत शांति फैली
हुई थी सुमित्रा ने हाथ जोड़कर प्रणाम
किया और कहा मैं आ गई हूं महाराज अब मुझे
बताइए कि मेरी परीक्षा क्या है ज्ञानानंद
ने आंखें खोली और बोले यह संसार एक भ्रम
है पुत्री जो इसे समझ लेता है वही अपने
भाग्य को बदल सकता है लेकिन इससे पहले कि
हम तुम्हें ज्ञान दें तुम्हें अपनी
परीक्षा देनी होगी कमानंद ने कहा हम
तुम्हें इस जंगल में छोड़ रहे हैं तुम्हें
रात भर अकेले यहीं रहना होगा यह जंगल बहुत
रहस्यमय है यहां जंगली जानवर भी हैं और
अदृश्य शक्तियां भी लेकिन अगर तुमने अपना
डर छोड़ दिया तो तुम पहली परीक्षा पास कर
जाओगी सुमित्रा को यह सुनकर झटका लगा रात
भर अकेले जंगल में वह डर गई थी लेकिन उसने
अपने भीतर हिम्मत जुटाई और कहा मैं तैयार
हूं तीनों साधु मुस्कुराए और बोले हम कल
सुबह सूरज उगने के बाद यहां आएंगे तब तक
तुम्हें अकेले रहना होगा इतना कहकर तीनों
साधु जंगल के दूसरे छोर की ओर चले गए और
सुमित्रा अकेली रह गई शाम ढलते ही जंगल
में अंधेरा छाने लगा चारों ओर अजीब अजीब
सी आवाजें आने लगी दूर किसी पेड़ पर उल्लू
बोल रहा था झाड़ियों में कुछ सरसरा की
आवाजें आ रही थी सुमित्रा ने अपने दिल को
संभालना और एक पेड़ के नीचे बैठ गई लेकिन
जैसे ही रात गहराने लगी भय भी बढ़ने लगा
अचानक उसे लगा कि कोई परछाई उसकी ओर बढ़
रही है उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा
क्या यह कोई जंगली जानवर है या कोई भूत
लेकिन तभी उसे साधुओं की बात याद आई अगर
तुमने अपना डर छोड़ दिया तो तुम पहली
परीक्षा पास कर जाओगी उसने अपनी आंखें बंद
की गहरी सांस ली और खुद से कहा मुझे डरना
नहीं चाहिए मैं यहां अकेली नहीं हूं मेरे
साथ भगवान है जैसे ही उसने यह सोचा वह
परछाई धीरे-धीरे गायब हो गई रात भर वह इसी
तरह अपने डर से लड़ती रही कभी कोई आवाज
सुनाई देती कभी अजीब सा कंपन महसूस
होता लेकिन उसने खुद को शांत रखा और
हिम्मत नहीं हारी सुबह की पहली किरण और
सफलता जैसे ही सूरज की पहली किरण जंगल में
पड़ी सुमित्रा ने राह की सांस ली थोड़ी
देर बाद तीनों साधु वहां पहुंचे और देखा
कि सुमित्रा मुस्कुरा रही है ज्ञानानंद
बोले पुत्री तुमने अपनी पहली परीक्षा पास
कर ली तुमने डर को जीत लिया अब तुम्हारे
जीवन में बड़ा बदलाव आने वाला है सुमित्रा
की आंखों में आशा की चमक थी वह समझ गई थी
कि डर केवल हमारे मन में होता है और जब हम
उसका सामना करते हैं तो वह खुद ही समाप्त
हो जाता
है सुमित्रा की पहली जीत जंगल में से भरी
रात बिताने के बाद सुमित्रा की आंखों में
अब डर की जगह आत्मविश्वास
था जब सूरज की पहली किरणें जंगल की शाखाओं
से छनकर उसके चेहरे पर पड़ी तो उसने महसूस
किया कि वह पहले से कहीं अधिक शांत और
मजबूत हो चुकी थी तीनों साधु मुस्कुरा रहे
थे ज्ञानानंद बोले पुत्री तुमने पहली
परीक्षा पास कर ली अब तुम तैयार हो दूसरी
परीक्षा के लिए सुमित्रा ने विनम्रता से
सिर झुकाया और कहा मैं तैयार हूं महाराज
तीन साधुओं का रहस्य तीनों साधु सुमित्रा
को लेकर एक पहाड़ी के ऊपर बने एक पुराने
मंदिर में गए यह मंदिर देखने में साधारण
था लेकिन वहां एक अजीब सी ऊर्जा महसूस हो
रही थी जैसे ही सुमित्रा ने मंदिर के
द्वार पर कदम रखा उसे अपने शरीर में एक
हल्की कंपन महसूस हुई तभी धनानंद ने कहा
अब समय आ गया है कि हम तुम्हें अपने
वास्तविक स्वरूप के बारे में बताएं
सुमित्रा चौक गई आपका वास्तविक स्वरूप
ज्ञानानंद ने अपनी आंखें बंद की और अचानक
उनके शरीर से एक तेज प्रकाश निकलने लगा
उसी क्षण कमानंद और धनानंद भी प्रकाश से
घिर गए कुछ ही क्षणों में उनके सामने
साधारण मनुष्यों के बजाय तीन दिव्य
प्राणियों की आकृतियां खड़ी थी वे देवता
थे सुमित्रा विस्मय से देखती रह गई वह कुछ
कह ही नहीं पाई कमानंद बोले हम साधारण
साधु नहीं है पुत्री हम तीनों ब्रह्मा
विष्णु और महेश के दूत हैं और इस पृथ्वी
पर कुछ विशेष उद्देश्यों के लिए आए हैं
ध्याना अंद आगे बोले हमें आदेश मिला था कि
हम किसी ऐसे व्यक्ति की परीक्षा लें जो
सच्चे मन से अपने भाग्य को बदलना चाहता हो
और हमने तुम्हें चुना सुमित्रा की आंखों
में आंसू आ गए उसे अब समझ में आ रहा था कि
यह साधु कोई आम संत नहीं थे दूसरी परीक्षा
त्याग और समर्पण ज्ञानानंद ने कहा तुमने
डर पर विजय पा ली लेकिन अब तुम्हें एक और
परीक्षा देनी होगी त्याग की परीक्षा
सुमित्रा ने पूछा क्या त्याग करना होगा
कमानंद बोले तुम्हें अपने सबसे प्रिय
वस्तु का त्याग करना होगा वही वस्तु जिससे
तुम्हारा सबसे अधिक लगाव
हो सुमित्रा सोच में पड़ गई उसके पास वैसे
भी कुछ नहीं था मगर फिर उसे अपने पति की
तस्वीर याद आई हरिप्रसाद की मृत्यु के बाद
वही एक चीज थी जिससे वह खुद को जोड़ करर
रखती
जब भी वह दुखी होती उस तस्वीर को देखती और
अपने पति को याद करती उसने धीरे से पूछा
क्या मुझे अपने पति की तस्वीर छोड़नी होगी
ध्याना अंद बोले अगर वही तुम्हारी सबसे
प्रिय वस्तु है तो हां लेकिन याद रखो
सच्चा त्याग तभी होता है जब वह स्वेच्छा
से किया जाए अगर तुम इस परीक्षा के लिए
तैयार नहीं हो तो हम तुम्हें बाध्य नहीं
करेंगे सुमित्रा के मन में संघर्ष शुरू हो
गया क्या वह अपने पति की अंतिम निशानी को
छोड़ सकती है उसने कुछ देर सोचा और फिर
कहा अगर मेरे जीवन को बदलने के लिए यह
आवश्यक है तो मैं तैयार हूं तीनों साधु
मुस्कुरा उठे तो जाओ और अपनी सबसे प्रिय
वस्तु को गांव के तालाब में प्रवाहित कर
दो त्याग का क्षण सुमित्रा गांव वापस आई
और अपनी झोपड़ी में गई वहां एक पुराने
संदूक में वह तस्वीर रखी हुई थी उसने
कांपते हाथों से उसे उठा या और तालाब की
ओर चल पड़ी गांव के कुछ लोग उसे ऐसा करते
देख रहे थे वे आपस में बातें कर रहे थे अब
यह पागल हो गई है अपने पति की तस्वीर
क्यों फेंक रही है लेकिन सुमित्रा ने उनकी
बातों पर ध्यान नहीं दिया उसने धीरे से
तस्वीर को पानी में प्रवाहित कर दिया जैसे
ही तस्वीर पानी में डूबी उसे महसूस हुआ कि
उसके दिल का सारा भार भी पानी में समा गया
है अब वह हल्का महसूस कर रही थी दूसरी
परीक्षा स
जैसे ही वह वापस जंगल में पहुंची तीनों
साधु वहां खड़े थे ज्ञानानंद बोले पुत्री
तुमने त्याग की परीक्षा भी पास कर ली अब
तुम उस बंधन से मुक्त हो चुकी हो जो
तुम्हें अतीत से जोड़कर रखता था सुमित्रा
को अब सच में लगने लगा कि उसका जीवन बदल
रहा है ध्याना बोले अब तुम्हारी अंतिम और
सबसे कठिन परीक्षा बाकी है सुमित्रा ने
सिर झुका लिया मैं तैयार हूं महाराज तीसरी
और सबसे कठिन परीक्षा सुमित्रा ने और
त्याग की परीक्षा पास कर ली थी अब वह पहले
से कहीं अधिक मजबूत और आत्मविश्वास महसूस
कर रही थी लेकिन उसे नहीं पता था कि उसकी
सबसे कठिन परीक्षा अभी बाकी थी तीनों साधु
मंदिर के भीतर खड़े थे जब सुमित्रा वहां
पहुंची तो ज्ञानानंद ने गंभीर स्वर में
कहा पुत्री अब तुम्हारी अंतिम परीक्षा का
समय आ गया है सुमित्रा ने सिर झुकाकर कहा
मैं तैयार हूं महाराज ध्याना बोले यह
परीक्षा तुम्हारी आत्मा की परीक्षा है
तुम्हें यह सिद्ध करना होगा कि तुम केवल
अपने लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए भी जी
सकती हो सुमित्रा ने आश्चर्य से पूछा मुझे
क्या करना होगा कमानंद ने कहा गांव में एक
वृद्ध महिला रहती है जिसका कोई सहारा नहीं
है वह भूखी और बीमार है तुम्हें अपना सारा
भोजन और अपनी झोपड़ी उसे देनी होगी और फिर
तुम्हें जंगल में जाकर सात दिन तक ध्यान
करना होगा बिना भोजन और पानी के यह सुन
सुमित्रा स्तब्ध रह गई अपना घर और भोजन
छोड़ दूं और फिर सात दिन बिना कुछ खाए पिए
ध्यान करूं यह परीक्षा किसी भी अन्य
परीक्षा से अधिक कठिन थी मन का संघर्ष
सुमित्रा की आंखों के सामने उसकी झोपड़ी
का दृश्य आ गया यह घर उसका अंतिम सहारा था
अगर उसने इसे छोड़ दिया तो वह कहां जाएगी
लेकिन फिर उसे साधुओं की बातें याद आई अगर
तुमने यह परीक्षा पास कर ली तो तुम्हारा
जीवन पू तरह बदल जाएगा सुमित्रा ने अपने
भीतर झांका और फैसला किया ठीक है महाराज
मैं यह करने के लिए तैयार हूं सब कुछ
छोड़ना सुमित्रा गांव लौटी और अपनी झो
पड़ी उस वृद्ध महिला को दे दी उसने अपने
बचे खुसे भोजन को भी उसे सौंप दिया गांव
के लोग यह देखकर हैरान थे यह क्या कर रही
है अपना सब कुछ क्यों छोड़ रही है लेकिन
सुमित्रा ने किसी की बातों पर ध्यान नहीं
दिया वह सीधा जंगल की ओर बढ़ गई जहां उसे
सात दिन तक ध्यान करना था सात दिन का कठिन
ध्यान पहला दिन बीता और सुमित्रा को बहुत
भूख लगी लेकिन उसने अपनी चेतना को भटकने
नहीं दिया उसने अपनी आंखें बंद की और
साधुओं के दिए हुए मंत्रों का जाप करने
लगी दूसरे दिन उसे प्यास ने सताना शुरू
किया लेकिन उसने पानी की इच्छा को भी
त्याग दिया और ध्यान में लगी रही तीसरे
दिन उसके शरीर में कमजोरी आने लगी लेकिन
उसने हार नहीं मानी चौथे दिन उसे लगा कि
वह अब और नहीं सह पाएगी लेकिन तभी उसे
साधुओं की बातें याद आई सच्ची शक्ति शरीर
में नहीं मन में होती है पांचवे और छठे
दिन वह पूरी तरह ध्यान में डूब गई थी अब
उसे भूख प्यास महसूस ही नहीं हो रही थी
सातवें दिन जब सूरज उगा तो कुछ अद्भुत हुआ
सुमित्रा की आत्मा एक नई ऊर्जा से भर गई
थी उसे महसूस हो रहा था जैसे वह एक साधारण
स्त्री नहीं रही बल्कि एक दिव्य शक्ति से
जुड़ चुकी
सुमित्रा का रूपांतरण जब सातवा दिन पूरा
हुआ तो तीनों साधु उसके सामने प्रकट हुए
ज्ञानानंद बोले पुत्री तुमने अपनी अंतिम
परीक्षा भी पास कर ली अब तुम केवल एक
साधारण विधवा नहीं हो बल्कि एक सशक्त
आत्मा बन चुकी हो कमानंद बोले तुम्हारे
भीतर अब वह शक्ति आ गई है जिससे तुम ना
केवल अपना बल्कि दूसरों का भी भाग्य बदल
सकती हो ध्याना ने अपने हाथ उठाए और कहा
तुम्हें आशीर्वाद देते हैं कि अब से
तुम्हारी जिंदगी सुख शांति और सम्मान से
भरी होगी सुमित्रा के चारों ओर एक सुनहरी
रोशनी फैल गई उसने आंखें बंद कर ली और जब
खोली तो वह पहले से कहीं अधिक शांत मजबूत
और तेजस्वी महसूस कर रही थी गांव में
वापसी और सम्मान जब सुमित्रा गांव लौटी तो
गांव वाले उसे देखकर चौक गए अब वह कोई
दुखी विधवा नहीं थी उसके चेहरे पर दिव्यता
थी उसकी आंख में आत्मविश्वास था गांव के
लोगों ने उसे पहले तिरस्कृत किया था लेकिन
अब वे उसके पास आकर उसके चरण छूने लगे मां
हमें क्षमा करो हमने तुम्हारा अपमान किया
था लेकिन अब हमें समझ आ गया कि तुम कोई
साधारण स्त्री नहीं हो सुमित्रा मुस्कुराई
और कहा सच्ची शक्ति बाहर नहीं हमारे भीतर
होती है जब हम अपने डर अपने मुंह और अपने
अहंकार को त्याग देते हैं तभी हम असली
शक्ति को प्राप्त कर सकते हैं
गांव वालों ने उसे गांव की सम्माननीय
महिला घोषित कर दिया अब वह पूरे गांव की
मार्गदर्शक बन गई थी तीन साधुओं का
आशीर्वाद और विदाई तीनों साधु फिर से उसके
सामने प्रकट हुए ज्ञानानंद बोले हमारा
कार्य पूरा हुआ अब हमें वापस जाना होगा
सुमित्रा ने हाथ जोड़कर कहा मैं आपकी
आभारी हूं महाराज आपने मुझे सिखाया कि
सच्चा सुख और शक्ति हमारे भीतर है कमानंद
मुस्कुराए और बोले तुम अब केवल अपने लिए
नहीं बल्कि पूरे संसार के लिए जिऊंगी
ध्यान ने हाथ उठाया और आशीर्वाद दिया
तुम्हारा जीवन अब एक नई रोशनी से भरा
रहेगा जैसे ही उन्होंने यह कहा तीनों साधु
प्रकाश में बदलकर आकाश में विलीन हो गए
नया जीवन नई पहचान अब सुमित्रा सिर्फ एक
विधवा नहीं थी वह पूरे गांव की मार्गदर्शक
बन चुकी थी उसने गांव में शिक्षा सेवा और
परोपकार की एक नई लहर चलाई जहां पहले लोग
उसे अपशकुन मानते थे अब वे उसकी सलाह के
बिना कोई भी निर्णय नहीं लेते थे अब वह
सिर्फ सुमित्रा नहीं थी वह मां सुमित्रा
बन चुकी थी अध्याय पा समाप्त कहानी के
सारे एक डर को हराकर ही हम सच्ची शक्ति
प्राप्त कर सकते हैं दो त्याग और समर्पण
से जीवन में नई ऊंचाइयां मिलती हैं त्रि
सच्चा परिवर्तन बाहर से नहीं भीतर से आता
है जहर जो खुद को बदल सकता है वह पूरे
समाज को बदल सकता है अंतिम शब्द तीन साधु
और विधवा सुमित्रा की यह कहानी हमें
सिखाती है कि हमारा भाग्य हमारे हाथ में
है यदि हम अपने डर अपने मुंह और अपने
अहंकार को त्याग दें तो हम जीवन में कुछ
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